Suno India
Listen out podcasts on issues that matter!
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In feminist organisations and within the academic discourse, we sit with the term ‘safe space’ quite often and roll it in our mouth to reiterate how multifarious and ever changing that term is. But when we asked Muskan and Shomya what it means to them and where they feel the most at home, they responded that these were spaces they have created away from home. 20-year-old Muskan from Samastipur, Bihar and 19-year-old Shomya from Thane, Maharashtra joined this conversation on a Zoom call from their safe spaces where the former had children reading in the background and the latter had a group of friends moving in and out of the computer room. Meet them as they entrust us with the tale of how this space came to be.
‘Mera Chashma, Mere Rules’, a three-episode podcast produced by The Third Eye in collaboration with Partners for Law in Development (PLD), brought 4 girls—between the ages of 18–20, hailing from different religions, states (Bihar, Jharkhand, Maharashtra, and Uttar Pradesh), social and familial setups—to discuss the range of adolescent experiences which seldom become the subject of policy discussion. New episode out every Monday!
Collaborators: Partners for Law in Development (PLD) and The Third Eye
Script and Production: Madhuri Adwani
Voices: Muskan, Sahiba, Shomya and Shubhangini
Facilitation: Kanika and Madhuri
Illustrations: Anupriya
Cover Image editing: Sadia Saeed
The grant for the project has been supported by UNFPA India. For more information see https://pldindia.org/ and https://pldindia.org/advocating-for-adolescent-concerns/
नारीवादी संस्थाओं और अकादमिक बातचीत में ‘सुरक्षित जगह’ के बारे में अक्सर बात की जाती है. भिन्न मौकों पर हम इस बात को दोहराते हैं कि इस लफ्ज़ के माने अलग-अलग लोगों के लिए, और अलग-अलग वक़्त पर कितने मुख्तलिफ़ रहे हैं. कुछ ऐसा ही सवाल हमने मुस्कान और शोम्या से पूछा कि इस लफ्ज़ का उनके लिए क्या मतलब है? और कौन सी जगह पर उन्हें सबसे ज़्यादा घर जैसा अहसास होता है, जहां वे आराम और सुकून से रह सकती हैं? तो, उन्होंने बताया कि ये वे जगहें हैं जो उन्होंने अपने घर से दूर बनाई हैं. समस्तीपुर, बिहार की रहनेवाली 20 साल की मुस्कान और महाराष्ट्र ठाणे से 19 साल की शोम्या ने अपनी सुरक्षित जगह से ज़ूम कॉल पर इस बातचीत में हिस्सा लिया. जहां मुस्कान के पीछे से बच्चों से पढ़ने की आवाज़ आ रही थी. और शोम्या के दोस्त लगातार कंप्यूटर रूम से आ-जा रहे थे. आइए उनसे सुनें कि कैसे ये जगह उनके लिए सुरक्षित जगह बन गई.
‘मेरा चश्मा मेरे रूल्स’ तीन एपिसोड की एक पॉडकास्ट शृंखला है. इसे द थर्ड आई ने ‘पार्टनर फॉर लॉ इन डेवलपमेंट (पीएलडी) के साथ मिलकर तैयार किया है. पीएलडी की मदद से हमारी मुलाकात बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों से 18 से 20 साल की 4 लड़कियों से हुई. अलग-अलग सामाजिक और पारिवारिक परिवेश से आने वाली ये लड़कियां एक साझा मंच पर किशोरावस्था के अपने अनुभवों को साझा कर रही हैं जो कभी-कभार ही हमारी पॉलिसी का हिस्सा बनते हैं.
सहयोग – पार्टनर्स फॉर लॉ एंड डेवलपमेंट (पीएलडी) और द थर्ड आई
लेखन, संपादन और रूपरेखा – माधुरी आडवाणी
आवाज़ – मुस्कान, साहिबा, शौम्या और शुभांगनी
समन्वयन – कनिका और माधुरी
चित्रांकन – अनुप्रिया
कवर इमेज संपादन – सादिया सईद
इस प्रोजेक्ट की ग्रांट UNFPA के समर्थन से है. अधिक जानकारी के लिए https://pldindia.org/ और https://pldindia.org/advocating-for-adolescent-concerns/ पर जाएं.
--- Send in a voice message: https://anchor.fm/nirantar-trust93/message
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Robert Fox
August 25, 2022
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August 25, 2022
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