Suno India
Listen out podcasts on issues that matter!
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We are turning an inward eye to look at our mental experiences, and how they intersect with societal structures.
In an attempt to move away from pathological and clinical readings and move towards lived experiences, our podcast series Mann Ke Mukhaute interweaves fictional stories and experiential voice notes. We have tried hard and not been able to find the English word for ‘mann’ - the Hindi word that brings together brain, mind and heart, and hints at an intuitive inner truth.
In the third episode of this podcast series, we address Care Work.
Care Work is finally being recognised as emotional and physical labour, and its deep connection with gender are being investigated academically and socially. But what do caregivers themselves think of their work? We talked to Meena, Parmeshwar, Anna, Neelima and Bindu about their role as caregivers, and they looked around and said:
“Yeh sab saaf rakhna, yaha se hum shuru karte hai par safai dikhti kahan hai!’”
[It starts with keeping everything clean, but the cleanliness never shows.]
Who is expected to take care and what happens to their mental health? What is the language of their mann as they take on this work? Does a gendered and caste-ist lens prescribe the role of care-giving to some people and not to others?
We explore these questions with the story Maine Saaf Kiya Tumhara…- a transliteration of the original story I Cleaned the - by Kanya D'Almeida, published in Granta. This story received the 2021 Commonwealth Short Story Prize.
मानसिक स्वास्थ्य के तयशुदा खांचे से बाहर निकल, उसे आपबीती और जगबीती के अनुभवों एवं कहानियों के चश्मे से समझने की एक महत्वाकांक्षी पहल "मन के मुखौटे" के ज़रिए हम एक बार फ़िर वापस मानसिक स्वास्थ्य की तरफ़ मुड़कर देख रहे हैं. इस पॉडकास्ट सीरीज़ के नए एपिसोड में हम देखभाल से जुड़े मुद्दों पर सवालों और अनुभवों के ज़रिए इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं.
देखभाल के काम को लेकर हमारे बीच इतनी समझ तो बन चुकी है कि इसमें जितना शारीरिक श्रम लगता है उससे कहीं ज़्यादा मानसिक श्रम भी शामिल है. साथ ही जेंडर से जुड़े इसके गहरे रिश्ते की पड़ताल सामाजिक और अकादमिक दोनों ही तरीकों से की जा चुकी है. सवाल यह है कि किसी की देखभाल करने वाले ख़ुद अपने काम को कैसे देखते हैं? हमने मीना, परमेश्वर, एना, नीलिमा और बिंदु से बात कर उनसे इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “ये सब साफ़ रखना, यहां से हम शुरू करते हैं पर सफ़ाई दिखती कहां हैं?”
किसी के देखभाल की अपेक्षा किससे की जाती है और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इसका क्या असर पड़ता है? बुरी तरह से थकान और निराशा के अलावा देखभाल करने वालों का मन कौन सी भाषा कहने की कोशिश करता है? इस काम में जाति और जेंडर की क्या भूमिका है? क्या ये काम सभी के लिए सामान्य है या किसी ख़ास जाति और जेंडर से जुड़े लोगों के ज़िम्मे ये काम आता है?
मन के मुखौटे के तीसरे एपिसोड – ‘मैंने साफ़ किया तुम्हारा…’ में हम एक नई कहानी के ज़रिए उन लोगों को भी सुनेंगे जो देखभाल के काम में लगे हुए हैं. उनके अनुभवों के ज़रिए हम इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश करेंगे.
'मैंने साफ़ किया तुम्हारा...' कहानी मूलत: अंग्रेजी कहानी 'आई क्लीन द-' का हिन्दी अनुवाद है. यह कहानी ग्रांटा वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुकी है. इसका हिंदी अनुवाद माधुरी आडवाणी ने किया है. इस स्टोरी को 2021 कॉमनवेल्थ शॉर्ट स्टोरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
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Robert Fox
August 25, 2022
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August 25, 2022
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